पंचतत्त्वो में आकाश तत्व

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मानव शरीर पंच तत्वों पर ही आधारित है और उस में आकाश तत्व को आत्मा माना गया है....

आज हम आकाश को खोते जा रहे हैं.... आज आकाश रुपी अविनाशी और अखंडित आत्मा भी प्रदुषण के द्वारा जख्मी होती जा रही है ;

भारतीय सनातन धर्म की ये सदियों से मान्यता रही है की आत्मा के बिना शरीर मिटटी का खिलौना है और आत्मा अजेय और अमर है किन्तु आज हम इस अजेय आत्मा रुपी आकश पर विजय पाने के लिए आकाश को ही घायल करते जा रहे हैं.

आकाश को शस्त्रों में पिता भी माना गया है और यदि आकाश को पिता माना गया है तो उसका कारन ये नहीं की वो सिर्फ हमसे ऊपर रहता है पर उसका कारन ये है की आकाश हमारा पालन करता है, हमारी रक्छा करता है उन तकलीफों और बुराइयों से जो हम पर आने वाली होती हैं. यदि हमारे पूर्वजो ने ये बात लिखी है तो गलत नहीं लिखा है बस हमें हमारा द्रष्टिकोण बदलने की जरूरत है.

आकाश हमारा पालन करता है बारिश में धरती पर पानी बरसा कर, और फिर उस बारिश से उगी फसलो को खाने लायक बनाने के लिए मौसम का परिवर्तन ला कर

आकाश हमारी रक्छा करता है सूर्य की उन सभी बुरी किरणों से जो हमें नुकसान पहूँचाती है, और हम तक सिर्फ उन्ही किरणों को आने देता है जो हमारे लिए लाभदायक है,

आकश ये सब ठीक उसी तरह जिस तरह एक पिता अपने बच्चो के लिए सारी तकलीफे उठाता है और उनका पालन करता है. जब तक बच्चे बड़े हो जाये पिता ही आत्मा भी होता है और बच्चे कभी भी बड़े नहीं हो सकते क्यों की पिता हमेशा ही बड़ा होता है ठीक आकश की तरह

आज हम आकाश को घायल करते जा रहे हैं रासायनिक प्रदूषण से, आज आकाश से आने वाला पानी शुद्ध नहीं होता क्यों की हमने ही प्रदूषण फैलाया है.....

आज आकाश रुपी पिता आपने आप को असाहय महसूस करता है अपने बच्चो की रक्छा करने में क्यों की हमने ही आकाश के शरीर पर ढेरो घाव बना कर उसे घायल कर दिया है,

यदि हम चाहते हैं की आकाश रुपी पिता का साया हम पर हमेशा बना रहे, या आकाश रुपी आत्मा धरती, वायू, अग्ग्नी और जल से बने हुए पुतले की जीवन प्रदान करती रहे तो हमें आकश को नुकसान पहूंचना बंद करना होगा.

बंद करना होगा हमें कल कारखानों से रसायनों को निकालना, बंद करना होगा आकाश पर बार बार वार करना चाहे ये वार युद्ध की मिसाइलो से हो रहा हो या अन्तरिक्ष पर विजय प्राप्त करने के उद्धेश्य से rocket के द्वारा आकाश के ऊपर जाना.

यदि हम सुरक्षित जीना चाहते हैं तो बंद करना होगा हमें इस यूद्ध को जो हम या तो अपनी आत्मा से लड़ रहे है या आपने ही पिता से.