जब भी हम जगजीत सिंग जी की गजल "वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी सुनते हैं" तो दिल में एक आस जरूर जगती है की काश ऐसा हो पाता की हम सच में फिर से बचपन में जा पाते जहा न जिंदगी की जदोजहद है न नौकरी या कारोबार की परेशानिया . वास्तव मे ऐसा होना संभव तो नहीं है लेकिन मैंने आज से कुछ लम्हों को चुराया और पहुँच गया बचपन की यादो मे.
आज घर पर काका काकी मामा मामी दीदी जीजा सभी आये हुए थे और अचानक मैंने सभी से पैसे मांगना शुरू कर दिया बिलकुल वैसे ही जैसे सालो पहले बचपन मे माँगा करता था, किसी ने भी पैसे देने से मन नहीं करा बल्कि बड़े रुपये के नोट निकाल कर देने लगे और मैंने उन सभी नोटों को एक सिरे से नकार दिया... मैंने कहा मुझे चिल्लर पैसे चाहिए चीज खाना है(मै बिलकुल ऐसे ही बचपन में पैसे लिए करता था) ........
मैंने सभी से जितने हो सकते थे उतने पैसे लिए और मेरे चचेरे भाई(जो की मेरा बहोत अच्छा दोस्त भी है) को साथ ले कर बिना किसी से कुछ कहे बाहर चला गया.
हम लोग नजदीक की सब्जी मंडी गए वहां हमने पानी बताशे से शुरवात की और फिर ठेले पर कबीट चटनी, जलजीरा, गन्ने का रस, बर्फ लड्डू , बुढिया के बाल, १रुपये वाली कचोरी, चावल के पापड़ खाए और उसके बाद दुकान से संतरे की गोली खरीदी और वो भी खा ली और उसके बाद हम घर पहुंचे..
घर पहुँचने के बाद जब हमने हमारे कार्यकलापो को सभी को बताया तो मेरी दीदी, मेरी पत्नी और मेरी भाभी तीनो मेरे पैर तोडना चाहती थी क्योंकि मै उन्हें मेरे साथ नहीं ले कर गया था. हा हा हा हा हा हा हा हा ....
उन तीनो का तो ठीक है लेकिन घर पर बाकि के जो सदस्य थे वो सभी इस प्यार भरी लड़ाई का मजा ले रहे थे और और बड़े ही खुश नजर आ रहे थे जिस कारण मुझे खुश होने का एक और मौका मिल गया.
अब मै मात्र एक समस्या से झूझ रहा हूँ, मै अभी नाना प्रकार की अजीब अजीब आवाजे निकाल रहा हूँ और साथ मे कुछ और भी जिसका वर्णन मै नहीं करूंगा... खैर मेरा तो ठीक है मै छत पर खुले मे सोता हूँ लेकिन मै डर रहा हूँ मेरे भाई के लिए जाने उसके साथ क्या हो रहा होगा... उम्मीद करता हूँ की उसको एक मछरदानी और बिस्तर जरूर मिल गया हो....
हा हा हा हा हा कृपया बुरा न मानियेगा
वैधानिक चेतावनी:--> यदि आप ये सब करना चाहते हैं तो आपके स्वास्थ और अन्य किसी भी समस्या के लिए मुझे दोषी न ठहराए...
कुछ समय के लिए बचपन की सैर
1 commentsPosted by AP at 12:01 AM
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