जी हाँ आज यही लिखना चाह रहा हूँ उसका कारण यह है की आज सबेरे-सबेरे कुछ किन्नरों ने लगभग जबरन १००० रुपये ले लिए. मुझे शिकायत उन १००० रुपयों के जाने की नहीं है लेकिन शिकायत इस बात से है की हम किस हद तकसब सहने के आदि हो चुके हैं.
भारत में लगभग सभी जगहों पर किन्नरों को हर अच्छे कम के बाद नेग या शगुन देने की प्रथा है और आज सबेरे तक मुझे इस प्रथा से कोई समस्या नहीं थी, कल तक मै किन्नरों को कभी १०-२० रुपये अपनी मर्जी से दे दिया करता था लेकिन आज सबेरे की जारण गुंडागर्दी वाली वसूली से उन लोगो के बारे में मेरी राय बदल गई, आज सबेरे ही मुझे ये भी पता चला की कुछ दिनों पहले मेरे पडोसी से उन्होंने बेटी के होने के शगुन के रूप में ११०० रूपये लिए थे वो भी ये जानते हुए की उस व्यक्ति की कुल मासिक आय मात्र ३५०० रुपये हैं और उसी ३५०० रुपये में उसे अपने ६ लोगो के परिवार को खाना खिलाना है, २ छोटी बेटियों को दूध और दवा दिलवानी है और एक भांजी के स्कूल की फीस भरनी है.
आज सबेरे जब मैंने किन्नरों से कहा की नहीं है मेरे पास अभी इतने पैसे आप अगली बार आ कर ले लेना तो प्रतिवाद स्वरुप एक धमकी मुझे मिली की अगली बार हमारी गुरु आएँगी तो २१०० रुपये देना पड़ेंगे, मेरे प्रतिवाद पर मुझे रोकने के लिए मेरे परिवार के साथ आस पास के भी सभी व्यक्ति यह कहने लगे की इनकी बद्दुआ बहोत तकलीफ पहूँचती है लेकिन मै ये जानना चाहता हूँ की किसी ऐसे व्यक्ति से जिसकी मासिक आय मात्र २०००-२५०० रुपये हो ११०० रुपये ले कर इनकी दुआ उसे कौन सा फायदा पहूंचायेगी, उस व्यक्ति को अपने बच्चो का भूखा पेट भरने के लिए या तो किसी के सामने हाथ फैलाना पड़ेगा या और अतरिक्त मेहनत करना पड़ेगी और दोनों ही स्थिति में उस व्यक्ति का तो नुकसान ही हुआ है ,
आज सबेरे ही एक बात और पता चली की १ घर आगे रहने वाले एक व्यक्ति ने पैसे न देते हुए किन्नरों की इस गुंडागर्दी का विरोध करा था तो इन लोगे ने उस बेचारे के घर में आतंक मचा दिया था, उसके घरो से सोफा और बिस्तर उठा कर बाहर तक खींच लाये थे , उसे जाने कितनी ही अभद्र गलिया दी और ज़माने भर की बद्दुआये देते हुए चले गए . मै अभी तक नहीं समझ पाया हूँ की इसमें उस बेचारे का क्या दोष था, वो सिर्फ यही चाहता था की उसकी मेहनत की कमाई उसके बीवी बच्चो के लिए खर्च हो न की किसी किन्नर के गहनों के लिए.
ये तो बात हुई किन्नरों की जबरन गुंडागर्दी और वसूली की अब बात करता हूँ नपुंसक भारतीय मानसिकता की
मेरे ससुर जी एक पुलिस वाले हैं और वो भी इस सब का निराकरण करने के लिए आये थे लेकिन नतीजा क्या निकला कुछ नहीं, अंतत उन्हें भी यही कहना पड़ा की इन्हें पैसे दे दो और जब मैंने विरोध करा था उनका भी वही जवाब था जो की बाकि सभी व्यक्तियों का था की इनकी बदूआये बड़ी बुरी होती हैं और ये लोग पैसे न मिलने की स्तिथि में आतंक मचाते हैं, और गालिया देते हैं. मै इस बात से हतप्रभ हूँ की कोई भी व्यक्ति क्यों इनका प्रतिरोध नहीं करना चाहता और उसका सीधा साधा जवाब ये है की ये सभी व्यक्ति बचपन से ही इस बात से डरे हुए हैं की किन्नरों की बददुये बुरी होती है.
ये है भारतीय नपुंसक मानसिकता जिसमे हम बुरी तरह से जकड़े हुए हैं, और न जाने कब इस सब से निकल पाएंगे,
आज जब मैंने मेरे कुछ बुद्धिवादी मित्रो से इस बारे में चर्चा करी तो उनका कहना था की यदि वो ये नहीं करेंगे तो खायेंगे क्या और मेरा जवाब ये है की क्या दुनिया के और मुल्को में किन्नर नहीं होते हैं, कोई ये नहीं कह सकता की नहीं होते लेकिन वे सभी मेहनत करते हैं, ऐसे गुंडागर्दी नहीं. और यदि हम बात करे हमारे ही भारतीय इतिहास की तो किन्नरों में एक महान योधा का नाम महाभारत के साथ अमर है. शिखंडी एक किन्नर थे लेकिन वे एक योधा भी थे कोई गुंडेनहीं.
मुझे किन्नरों के पैसे मांगने और दुंवाए देने से शिकायत नहीं है मुझे शिकायत है उनके इस गुंडागर्दी वाले तरीके से....वे यदि नेग चाहते हैं तो नेग का तात्पर्य ये है की आपको जो अपनी श्रधा से दे दिया गया है उसे आप रख ले और आशीर्वाद देते हुए चले जाये जो न दे रहा होउसको
वैसे हमें बचपन से ही कई सामाजिक बातो से डरना सिखाया जाता है और जब तक हम बड़े होते हैं तब तक डरते डरते मानसिक रूप से पूरी तरह से नपुंसक हो चुके होते हैं, और इस नपुंसक मानसिकता की वजह से हम कभी भी किसी भी सामाजिक बुरे कार्य का प्रतिरोध नहीं कर पाते हैं. आज जो मैंने देखा उससे मुझे ये कहते हुए बड़ी ही आत्म ग्लानी हो रही है की हम सब ऐसे ही नापुंसको की जिंदगी जी रहे हैं कभी किसी बात का डर और कभी किसी बात का और मै भी इसी समज का एक हिस्सा हूँ तो मै अपने आप को कही भी श्रेष्ठ नहीं पता हूँ
जैसा की मैंने पहले भी कई बार लिखा है फिर से लिख रहा हूँ की मै ये सब लिख कर किसी परिवर्तन की आशा नहीं करता हूँ लेकिन मै ये उम्मीद करता हूँ की हम सब एक दिन बदलेंगे......और जो भी मैंने लिखा है वो सिर्फ मेरे विचार है सभी अपने विचार व्यक्त करने के लिए स्वतन्त्र होते हैं मै भी हूँ
कुछ लोग ये सोच सकते हैं की मैंने ये सब इसके लिए लिखा हिया क्युओंकी मेरे पैसे गए तो उनकी जानकारी के लिए बता दूं की मेरी शादी के समय मेरे घर वालो ने उन्हें २१०० रुपये दिए थे और मेरे दादा -दादी जी की दी हुई सीख के कारण कभी भी कोई भी गरीब मेरे घर के दरवाजे से भूखा नहीं जाता और न ही किसी गरीब या बूढ़े व्यक्ति की मदद करने में मैंने कभी भी कोई संकोच करा है और उस सब में मेरे महीने के ४००-५०० रुपये बड़ी ही आसानी से खर्च हो जाते हैं तो मेरे लिए बात पैसे की नहींथी
किन्नरों की गुंडागर्दी जबरन वसूली और नपुंसक भारतीय मानसिकता
Posted by AP at 7:56 PM
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