छूत और अछूत व्यस्था और तार्किक एवं वैज्ञानिक कारण

कई दिनों से कुछ हिंदी में लिखने का मन था

कई दिनों से छूत और अछूत के बारे में लिखने की इच्छा भी थी पर मौका नहीं मिल पा रहा था.

आज मौका भी है और कोई दूसरा कम भी नहीं है हाँथ में तो सोचा की क्यों ना इस बारे में ही लिखा जाये और हिंदी में ही लिखा जाये.

मेरे दादा जी हमेशा कहा करते थे की हमारे देश में जो भी नियम बने थे उनके पीछे कोई ना कोई वैज्ञानिक या तार्किक कारण होते थे लेकिन कालांतर में समय के साथ वो सारे कारण रुढियो में बदल गए और हम लोग अन्धविश्वास में उन साडी रुढियो को मानते चले गए. ऐसे ही कई नियम/ रुढियो में एक है छूत और अछूत भावना का होना.

पहले जब छूत और अछूत का नियम बनाया गया था यह नियम कर्म प्रधान था लेकिन बाद में यही नियम कर्म प्रधान होने के बजाय जन्म प्रधान हो गया. मेरे कहने का मतलब ये है की पहले जो लोग गन्दगी वाले काम करते थे उन्हें ही अछूत माना जाता था लेकिन बाद में उस कुल में जन्म लेने वाले हर व्यक्ति को अछूत माना जाने लगा.

जैसा की मैंने कहा की लगभग हर नियम के पीछे एक तार्किक या वैज्ञानिक कारण होता था इस नियम के साथ भी ऐसे ही कारण जुड़े हुए थे.

जिन लोगो को पहले अछूत माना जाता था वो या तो चर्मकारी के कार्य करते थे या फिर सफाई के कार्य करते थे और बाकि वो सभी वर्ग जिन्हें अछूत नहीं माना जाता था ऐसे कार्य करते थे जिनमे गन्दगी से कोई सरोकार नहीं था. ये सभी व्यक्ति जो अछूत वर्ण के थे उनके शरीरो में गन्दगी एवम गन्दगी में रहने वाले किटानू से होने वाली बिमारियों के प्रति प्रतिरोधक छमता विकसित हो चुकी थी अतः उन्हें तो इन बीमारियों के होने के अंदेशा कम ही था लेकिन उनका शरीर प्रतिरोधक होने के बाद भी बिमारियों का वाहक तो बन ही सकता था.

अब यदि हम बात करे ब्राहमण लोगो को तो वो लोग सबेरे उठ कर सबसे पहले स्नानादि करते थे फिर पूजा करते थे और फिर बाकि जो भी कार्य होते थे उन्हें पूरा करते थे कई ब्राहमण समुदाय के ऐसे व्यक्ति भी थे जो दो बार स्नान और ध्यान करते थे, अब चूंकि ये व्यक्ति अत्यधिक साफ सफाई से रहने वाले थे एवं इन लोगो के शरीर में वो प्रतिरोधक छमता नहीं थी जो अछूत वर्ण के लोगो के शरीर में बन चुकी थी अतः अछूत लोगो का स्पर्श इनके लिए स्पष्ट रूप से घातक था और उस घातक स्थिति से निकलने के लिए एक नियम बना दिया गया छूत और अछूत का जो की कालांतर में एक कुरीति बन गई और ये व्यवस्था कर्म प्रधान होने के बजे जनम प्रधान हो गई.

आज भी यदि हमारे परिवार का ही कोई सदस्य यदि पाखाना (toilet ) साफ कर के आता है तो उसे कहा जाता है की पहले नहा लो फिर बाकि के काम करो जिसका कारण है की जो भी बीमारी के कीटाणु सफाई के समय उस व्यक्ति से लगे होंगे वो नहाने के बाद साफ हो जायेंगे.

ये व्यवस्था जब बनी थी तब कर्म प्रधान व्यवस्था के अनुसार यह व्यवस्था सही थी लेकिन जब यही व्यवस्था जन्म प्रधान हो गई तो सही व्यवस्था गलत हो गई.

उम्मीद करता हूँ की यह जानकारी आपके लिए उपयोगी रही

0 comments: