शहर के विकास के लिए पेड़ो का बलिदान

मेरे दादा जी मुझे हमेशा कहा करते थे की "हर अच्छे कम के लिए बलिदान की आवश्यकता होती है आवश्यक नहीं है की यह बलिदान किसी व्यक्ति या पशु के रूप में दिया जाये ये बलिदान कुछ भी हो सकता है और ये भी आवश्यक नहीं है की यह बलिदान ऐच्छिक एवं ज्ञात हो".

जब दादा जी मुझे ये सब बताया करते थे तब मै इतना बड़ा नहीं था की उनकी इन गूढ़ बातो को समझ पता लेकिन आज कुछ ऐसा देखा जिससे दादा जी की कही हुई उक्त बाते याद हो आई और मन भी काफी द्रवित हो उठा.

आज घर से ऑफिस आते समय एक पेड़ देखा जो की शायद थोड़े दिनों में नहीं रहेगा. यह एक नीम का पेड़ है, काफी पुराना, इतना पुराना की मै इसको मेरी पहली स्मृति से देख रहा हूँ. मैंने देखा की यह पेड़ सड़क को और बड़ा बनाने में बाधक बन रहा है, जो सड़क पहले १२ फीट की हुआ करती थी अब वो ही सड़क ४० फीट की दो रास्ता सड़क बन्ने वाली है और उन्ही दो रास्ता सडको के एक तरफ यह पेड़ बीच में बाधक बन रहा है.


जैसा मेरे दादा जी कहा करते थे की हर अच्छा काम बलिदान मांगता है और हमें हमारे शहर के विकास के लिए इस जैसे कई पेड़ो का बलिदान करना पड़ रहा है. हालाकि सिर्फ ये पेड़ ही नहीं है जिनका बलिदान किया जा रहा है, इसके अतरिक्त कई लोगो के घरोंदे भी टूटे है विकास के लिए और कई मंदिर मस्जिद और गुरूद्वारे भी लेकिन जो बलिदान मूक और अज्ञात है वो इन पेड़ो का ही बलिदान है.

मुझे हमेशा इस बात का दर्द रहता है की जब कोई मंदिर मस्जिद टूटता है तो लोग उसके लिए उच्च न्यायलाय तक में गुहार लगा देते हैं लेकिन जब बात आती है किसी वर्षो पुराने पेड़ के काटने की तो कोई क्यों एक भी बार आवाज नहीं उठाता.

मै जनता हूँ की इस पेड़ की भी वही नियति है जो बाकि पड़ी को होगी, मैंने कभी विकास के लिए किसी भी बलिदान को रोकने की कोशिश नहीं करी है लेकिन मै चाहता हूँ की ये पेड़ ना कटे क्युओंकी इस पेड़ से मेरी बचपन की यादे जुडी है, जुड़ा है दादा जी का वो प्यार जो उन्होंने मुझे नीम के पेड़ की खासियते बताते हुए सिखाया था, जुडी है मेरी बचपन की ढेरो बीमारिया जो मेरे दादा जी ने मात्र इस पेड़ की छाल और पत्तियों से ठीक कर दी थी. इस पेड़ के साथ जुड़ा है मेरा वो ज्ञान जो मैंने मेरे दादा जी से सीखा था और जिससे मैंने कई लोगो को उनके मुहासों और चमड़ी की कई बिमारियों से छुटकारा दिला दिया था बिना कोई अतिरिक्त पैसा खर्च किये मात्र इस पेड़ की छाले और पत्तियों की सहायता से.

मै इस सब को लिख कर नगर निगम इंदौर पर कोई दोषारोपण नहीं कर रहा हूँ क्योंकि मैंने ये भी देखा है की जहा तक संभव होता है वहां तक नगर निगम पेड़ो को बचा लेता है और मै उनके इस कार्य के लिए उनका आभारी भी हूँ. और आगे यही उम्मीद करता हूँ की जितने कम पेड़ कटे उतना ही अच्छा होगा.

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